# अपनी औकात #

एक सही कहावत है … Never judge the book by its cover ,  किसी भी व्यक्ति को उसके आवरण मात्र से मत आंकिए | हालाँकि आज के समय में इंसान की पहचान उसके कपड़ो और पहने हुए जूतों से ही होती है | परन्तु सच तो यह है कि  एक नज़र तो क्या,  कई मुलाकातें भी कम है किसी का सही आकलन करने के लिए |

इस कथन को चरितार्थ करता एक ख़ूबसूरत घटना, जो ३० साल पुरानी है परन्तु आज भी मेरे दिल के करीब रहती है, ….आइये आप भी सुने –..

बात ३० साल पुरानी है | मेरी उन दिनों राजस्थान के सिरोही जिला के एक छोटे से कसबे में पोस्टिंग थी | ग्रामीण इलाका होने के कारण, वहाँ की मुख्य खेती कपास, गेहूं और  सौफ की होती थी |  

एक दिन एक बहुत ही अजीब वाकया हुई जिसे मैं कभी भूल नहीं पाता हूँ | हमारे बैंक के पास में ही एक पेट्रोल पंप और ट्रेक्टर का शो रूम था — .”शंकर ऑटोमोबाइल” और उसका मालिक शंकर लाल अग्रवाल जिसका हमारे बैंक में खाता भी था |

ट्रेक्टर का ऋण वगैरह हमारे शाखा से ही होता था, इसलिए हमलोग उसके शो रूम पर अक्सर जाया करते थे | एक दिन मैं बैंक के कार्य के सिलसिले में उनके शो रूम में बैठा था,| समय दिन के करीब बारह बजे होंगे |

उसी समय गाँव का एक किसान जो मैले कुचैले कपडे में और पैर में फटे जूते पहने ट्रेक्टर के शो रूम में आया और  एक ट्रेक्टर का मुआयना कर रहा था |

ट्रेक्टर डीलर (सेठ) कुछ बातो से परेशान और अपनी फाइलों में उलझा हुआ था | वो किसान सेठ जी के पास आकर एक ट्रेक्टर (फोर्ड) की ओर इशारा करते हुए उसकी कीमत जाननी चाही |

पहले से ही खिन्न सेठ (डीलर) उसे  मैले कुचैले कपड़ो में देखा तो उसके मन में विचार आया कि इसकी तो हैसियत ही नहीं लगती  ट्रेक्टर खरीदने की | यह तो केवल मेरा समय बर्बाद करेगा | इसलिए वो झल्लाते हुए बोला — ,जाओ यहाँ से, मेरा दिमाग मत खाओ | कुछ लेना देना है नहीं और खाली हाथ ट्रेक्टर क्या खरीदोगे ?

तो अजनबी किसान के धीरे से कहा — ..आप इसकी कीमत तो बताओ |

इस पर उसे टालने के लिए सेठ ने कहा कि तीन लाख दस हज़ार रुपये इसकी कीमत है | तुम्हारी हैसियत है इसे खरीदने की ?

उसने तुरंत ही अपनी सिर से पगड़ी को उतारा, जिसके अंदर सौ सौ और हज़ार के बहुत सारे गड्डी थे, सेठ के टेबल पर बिखेर दिया और बोला….., इसे गिन लो और इस ट्रेक्टर की चाबी दो |

वो शंकर लाल जो ट्रेक्टर डीलर था , उस साधारण से किसान के पास इतने रुपये देख कर हक्का बक्का देखता रह गया | मैं भी पास बैठा यह सब तमाशा देख रहा था / मुझे भी अत्यंत आश्चर्य हो रहा था |

मैंने जिज्ञाषा से उससे पूछ बैठा कि इतने रूपये कहाँ से लाये ?

वह किसान बड़े शांत लहजे में जवाब दिया –. मैं किसान हूँ और सूट बूट नहीं पहनता हूँ जिसके कारण इस सेठ ने मुझे पहचानने में धोखा खा गया | मैं अपनी एक सौ बीघा जमीन पर खेती करता हूँ , मैं अपने गाँव में कपास की  सबसे ज्यादा पैदावार करता हूँ |

मेरे पास पहले ही एक ट्रेक्टर है ,मैं मॉडल change करना चाह रहा था ,इसलिए इस सेठ के पास आया था | मैं सूट बूट पहन कर कहाँ जाऊंगा, ? मुझे तो अपनी खेत , अपनी मिटटी से प्यार है |, हमारे पास time नहीं है ये बाहरी दिखावा करने का |

शंकर लाल तो बनिया था, ,उसे तुरुन्त ही अपने गलती का अहसाह तो गया, वो दौड़ कर उस बूढ़े किसान के पैर छु लिए और बड़ी इज्जत से ऑफिस में बिठाया और खूब खातिरदारी की |

भला क्यूँ ना करता ? , बिना भाग दौर, बिना मिहनत  के एक ट्रेक्टर जो बिक गया | तब मुझे वो कहावत याद आ गई .. ...Never judge the book by its cover…मेरे मन में उस किसान के प्रति सम्मान के भाव थे |   

BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,

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Categories: मेरे संस्मरण

7 replies

  1. Accha lava

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  2. Very nice

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  3. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    Feelings are important in our life as they come from heart,
    If you response back, they grow..
    If you ignore, they die…
    If you respect, they stay forever…
    Be happy….Be healthy….Be alive…

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