
चलो आज एक कहानी सुनाते है, मोहन काका की , जो कई सालों से माधवपुर और उसके आस पास के गाँव में घूम घूम कर ख़त बांटा करते थे | इस प्रकार वो लगभग गाँव के सभी घरों को जानते थे |
एक दिन मोहन काका को जब बाँटने को डाक मिली तो उसमे एक ऐसी चिठ्ठी थी, जो थी तो माधोपुर के पास के गाँव की, पर उस पते पर कभी उन्होंने पहले ख़त नहीं दिया था | और उस घर के बारे में उन्हें पता भी नहीं था |
खैर दिन भर सारी चिट्ठियाँ बाँट कर अंत में उस ख़त के पते को ढूंढते ढूंढते उस घर के पास पहुँच ही गए और दरवाजे पर पहुँच कर घंटी की बटन दबा दी |
जब घंटी बजाई तो अंदर से एक लड़की की आवाज़ आई ….कौन ?
तो इन्होने जबाब में कहा …… मैं डाकिया हूँ , आप की चिट्ठी आई है |
अंदर से ही उस लड़की ने ज़बाब दिया ….. चिट्ठी दरवाजे के निचे से डाल दीजिए |
मोहन काका मन ही मन सोचने लगे कि मैं चिठ्ठी लेकर इतने दूर से पता ढूंढते – ढूंढते गर्मी में यहाँ तक आ सकता हूँ और ये मोहतरमा दरवाजा तक नहीं आ सकती है ?
उन्हें बहुत गुस्सा आया और उन्होंने गुस्से में ही बोला…. रजिस्ट्री डाक है | आपको हस्ताक्षर करना पड़ेगा | आप दरवाज़ा खोल कर बाहर आइये |
तभी उस लड़की ने अन्दर से कहा . ..ठीक है, मैं अभी आती हूँ |
लेकिन काफी देर के बाद भी दरवाजा नहीं खुला तो मोहन काका को जोर का गुस्सा आ गया , और वे जोर जोर से दरवाज़ा पीटने लगे |
और गुस्से से कहा कि मेरे पास समय नहीं है …अभी और भी डाक बांटनी है |

इतने में जब दरवाज़ा खुला तो देख कर मोहन काका के होश उड़ गए |
क्योंकि सामने १०—१२ साल की एक मासूम लड़की थी जिसके दोनों पैर कटे हुए थे और किसी तरह वो घिसट घिसट कर दरवाजे तक आई थी और दरवाज़ा खोलते ही बोली ….Sorry काका , मुझे आने में थोड़ी देर हो गई |
उस लड़की की ऐसी हालत को देख कर मोहन काका को बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई और वे मन ही मन सोचने लगे कि उन्हें उस लड़की से ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था |
फिर मोहन काका संभल कर बोले …. कोई बात नहीं और फिर रजिस्ट्री डाक उस लड़की को थमा कर चले गए |
फिर लगभग १० दिनों के बाद उसी लड़की की एक और चिठ्ठी आई , तो मोहन काका फिर उस लड़की के घर पहुच कर घंटी बजाते हुए आवाज़ लगाई ….आप की चिठ्ठी आई है |
और आज दस्तखत करने की भी ज़रुरत नहीं है… आप कहे तो मैं दरवाजे के नीचे से चिठ्ठी डाल दूँ ?
तभी अन्दर से उस लड़की की आवाज़ आई ……नहीं नहीं, आप ज़रा रुकिए, मैं अभी आ रही हूँ |
थोड़ी देर में उस लड़की ने दरवाज़ा खोला और काका ने उसके हाथ से वो चिठ्ठी दे दिया और वापस् चलने को हुए |
तभी उस लड़की ने मोहन काका के हाथ में एक गिफ्ट का पैकेट दिया और बोली …..,अंकल , यह आप के लिए है |
और हां, चिठ्ठी के लिए शुक्रिया | मोहन काका शर्मिंदा होते हुए कहा …..अरे बेटी , ,इसकी क्या ज़रुरत थी |
तो लड़की ने जबाब दिया ….,नहीं नहीं, यह आप के लिए है , पर, इस पैकेट को घर जा कर ही खोलियेगा |
काका जब घर पहुँच कर उस पैकेट को खोल कर देखा तो उनके आँखों से झर झर आँसू गिरने लगे |

इस पैकेट में मोहन काका के लिए एक जोड़ी चप्पल थी क्योंकि मोहन काका बरसों से बिना चप्पलों के ही खाली पैर सभी जगह घूम घूम कर डाक बांटा करते थे, लेकिन आज तक किसे ने इस बात को नोटिस नहीं किया था,..
किसी का भी इस ओर ध्यान नहीं गया था , सिवाए इस नन्ही सी बच्ची के जिसके खुद के तो पैर नहीं है पर काका के पैरों की तकलीफ को समझ कर उन्हें चप्पलें गिफ्ट की |
उन्होंने चप्पल को अपने सिने से लगा लिया और उस बच्ची के लिए दिल से दुआएं निकले लगी |
वैसे आज के दौर में लोगों को सिर्फ अपनी परेशानी नज़र आती है , लेकिन जो अपनी परेशानी को छोड़ दूसरों की परेशानी को महसूस करे वही सच्चा इन्सान कहलाता है |
यह सही है कि हर इंसान को संवेदनशील होना ज़रूरी है वर्ना इंसान और जानवर में कोई क्या अंतर रह जायेगा ? …ज़रा सोचिये…..
इससे पहले की कहानी के लिए नीचे दिए link को click करें ..
# भीष्म – प्रतिज्ञा #

BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,
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Bahut Badhia Kahani. 👌
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Thank you dear ..
Stay connected and stay happy…
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💞उस की मोहब्बत को कुछ इस तरह से निभाते हैं हम 💞
💞वो नहीं है तकदीर में ,फिर भी उसे बेपनाह चाहते हैं हम💞
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वाह वाह क्या बात है /
शुक्रिया..
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Very heart touching story. I seem to have read this story before. Is it a repeat blog?
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yes sir,
this is repeated with some modification..
your memory is sharp sir..
Stay connected and stay happy…
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Reblogged this on Retiredकलम and commented:
मीठी मुस्कान , तीखा गुस्सा , खरे आँसू , खट्टी मीठी यादें,
और थोड़ी कड़वाहट …ये सब स्वाद मिलके जो पकवान बनता
है उसे ही ज़िन्दगी कहते है |
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