# अपने_पराये #

बाज़ी लगी थी उबले अंडे खाने की। कैशियर राजेन्द्र सिंह ने कहा था कि वे एक दर्जन अंडे आसानी से खा सकते हैं। एक ही बैठक में। हमें यक़ीन नहीं हुआ था। तय हुआ लंच टाइम में वे खा कर दिखाएंगे।अपने पैसे से मंगाएंगे, जीत गए तो उनके पैसे वापस साथ में बीस रुपये इनाम। इस निर्णय के बाद हम काम पर जुट गए।

उस दिन शाखा में अत्यधिक भीड़ थी। शिक्षकों के वेतन भुगतान का दिन था। हेडमास्टर साहब अपने शिक्षकों के साथ शाखा परिसर में जगह जगह गोल घेरा बना कर गमछा बिछाए हुए बैठे थे और रूपयों का बंटवारा कर रहे थे। साथ में शिक्षिकाएं भी थीं। वेतन के दिन स्कूल बंद रहता था।

तभी एक ज़ोरदार खडाक की आवाज़ आई। सभी आवाज़ की तरफ लपके। बाबू कपिलदेव सिंह ख़ून से लथपथ अपना कपाल हथेली से दबाए खड़े थे। सफ़ेद कमीज़ लाल हो गई थी। उनके सामने ही लेखापाल महोदय बिजेंद्र सिंह थर-थर कांप रहे थे। स्टाफ यूनियन का नेता अशोक ऊँगली दिखाते हुए बोल रहा था,

” FIR करेंगे, पुलिस केस होगा, क्रिमिनल एक्ट…जानलेवा हमले का आरोप..हम सब साक्षी हैं..विटनेस”

अशोक के इशारे पर सभी कर्मचारियों ने काम बंद कर दिया था। बिजेंद्र सिंह हाथ जोड़े रो रहे थे। लगातार कह रहे थे, “हमसे गलती हो गई। बाबू कपिलदेव सिंह ने लेजर नहीं फेंका होता तो मैं भी आक्रोश में वापस उनपर लेजर नहीं फेंकता। मुझे क्या पता था कि वार इतना तेज़ होगा कि कपार ही फट जाएगा। ईश्वर के लिए थाना कचहरी मत कीजिए”

“कुछ नहीं, कोई सफाई नहीं सुनी जाएगी।अब जीएम को शाखा आना होगा,आपको ऑन स्पॉट निलम्बन कराएंगे तभी काम शुरू होगा।” अशोक ने धमकी दी।

“मैं इलाज का सारा खर्चा उठाने को तैयार हूँ” बिजेंद्र सिंह ने चिरौरी की। 

शाखा प्रबंधक महोदय के कक्ष में भीड़ बढ़ने लगी।ग्राहक चिल्लाने लगे,”हुजूर काम शुरू करवाइए।बहुत देर हो रही है।”

शाखा प्रबंधक खैनी मसलते चैम्बर से बाहर निकले। कपिलदेव सिंह को ख़ून से सने देखकर गश खा गए। तुरन्त खैनी अपने निचले होंठ के पीछे दबाया और ड्राइवर को आवाज़ देने लगे, “जल्दी अस्पताल ले चलो, डॉक्टर के पास चलना बहुत जरूरी है, बाद में सोचा जाएगा क्या कार्रवाई करनी है।”

ड्राइवर रामेश्वर  जीप की तरफ लपका और बोनट उठा कर उसने कुछ कारीगरी की। एक दो बार स्वीच घुमाने के बाद फौजी जीप स्टार्ट हो गई। उस पर सवार हुए अपना सर दाबे हुए बाबू कपिलदेव सिंह, बाबू बिजेंद्र सिंह, शाखा प्रबंधक पांडे जी, यूनियन नेता अशोक , अध्यक्ष सीताराम और कोषाध्यक्ष बाबूलाल और दवा  इत्यादि दौड़ कर लाने के लिए एक मेसेंजर- कम-दफ़्तरी-कम-कैश कुली-कम-स्वीपर- कम-फ़र्राश लछुमन राम। 

शाखा में रह गए बाक़ी कर्मचारी.. फील्ड ऑफीसर, दो चपरासी और गार्ड । अशोक के निर्देश पर सभी कर्मचारियों ने काम बंद कर रखा था। फील्ड ऑफीसर किसान भाइयों से उलझे हुए थे।

शाखा से जीप अस्पताल के लिए निकल पड़ी । ऐसा लगा किसी गुफा से गब्बर सिंह की जीप अपने साथियों के साथ रामपुर के लिए निकली हो।

इतनी भीड़ देखकर डॉक्टर हरिनन्दन महतो घबरा गए। मैनेजर साहब को देख उन्हें कुछ तसल्ली हुई। उन्होंने कपिलदेव सिंह के माथे की चोट की सफाई की। घाव गहरा था पर उतना गम्भीर नहीं जितना ख़ून बहा था। कोई नस कट गया था इसीलिए ख़ून ज़्यादा बहा। कुल पांच टांके लगाने के बाद डॉक्टर ने पूछा,”चोट तो किसी चीज के प्रहार से लगी है, गिरने से तो लगी नहीं इसलिए मेडिकल नियमों के तहत पुलिस केस बनता है। ज़ख़्मी चाहे तो शिकायत कर सकता है।”

डॉक्टर के इस कथन से बिजेंद्र सिंह रुआंसे हो गए, यूनियन नेता अशोक की बांछें खिल गईं, शाखा प्रबंधक का मुंह लटक गया, कपिलदेव सिंह किंकर्तव्यविमूढ़ खड़े रहे और बाक़ी उत्सकुता से ताकने लगे कि देखें, ऊंट किस करवट बैठता है।

डॉक्टर ने फिर कहा, ” हाँ, यदि विक्टिम और मुजरिम आपस मे सुलह कर लें तो मुझे कोई आपत्ति नहीं। चलिए, मैं कुछ दवाइयां लिख देता हूँ…एंटीबायोटिक…घाव जल्दी सूखेगा और कुछ विटामिन, ताकत के लिए” यह कह कर वे पुर्जा लिखने लगे । लछुमन दवा लाने के लिए आगे आ गया। 

फिर डॉक्टर ने मरीज से पूछा,

“नाम?” “कपिलदेव सिंह”

“उम्र?” “बयालीस”

“गाँव” “बिशुनपुरा”

बिजेंद्र सिंह चौंक पड़े। 

” _बिशुनपुरा गांव के बानी रउआ_ “

(बिशुनपुरा गांव के निवासी हैं आप?)” 

उन्होंने कपिलदेव सिंह से पूछा।

” _जी, रउआ जाने लीं ई गांव के का? केहू गोतिया दियार?”_ 

(जी हाँ, क्या आप इस गांव को जानते हैं?कोई सगा सम्बन्धी?)”

 _”हाँ, हमर भतीजा के बियाह भईल बा ई गांव मा, दस बरिस पहिरे”_ 

(हाँ, मेरे अपने भतीजे की शादी हुई है इस गांव में।करीब दस साल पहले)

” _केकरा इहाँ”__ (किनके घर?)

” _ठाकुर बृज नन्दन सिंह के लईकी से”_ (ठाकुर बृज नन्दन सिंह की बेटी से)

अचानक कपिलदेव सिंह उठे और बिजेंद्र सिंह के पाँव छूए।

“तो आप दामाद जी के अपने चाचा हैं। और लड़की मेरी अपनी भतीजी।बृजनन्दन बाबू मेरे बड़का बाबूजी हैं।” 

बिजेंद्र सिंह ने दोनों हाथ उनके पट्टी लगे सर पर रखकर आशीर्वाद दिया। बोले,”खुश रहिए”

फिर कपिलदेव सिंह डॉक्टर महतो के क्लीनिक में इधर उधर खोजी निगाह से देखने लगे और मरीज के एक बेड के नीचे रखे पैन देख बिजेंद्र सिंह के पद प्रक्षालन के लिए उसे उठाने लगे। बिजेंद्र सिंह यह देख मुस्कुराए और बोले,”जाने दीजिए, इसकी कोई जरूरत नहीं। जब आपके घर आएंगे तब कीजिएगा। ऐसे भी, आज मैं आपका गुनहगार हूँ। कितना ख़ून बहा दिए हम आपका”

“कोई बात नहीं। यह आपका अधिकार है।हमने तो अपने घर की बेटी दी है आपको।अब आप सर फोड़ें या माथा।”

सभी हतप्रभ हो यह तमाशा देख रहे थे। अशोक कपिलदेव सिंह पर चिल्ला उठा,

“यह क्या कह रहे हैं आप? अधिकारियों को टेकुआ की तरह सीधा करने का यह सुअवसर हाथ से न जाने दीजिए”

कपिलदेव सिंह बोले, “अशोक जाने दो, बेटी-दामाद की बात बीच में अब आ गई है, ये मेरे पूजनीय हो गए हैं।इन्हें मैं पुलिस-थाना में नहीं डाल सकता।”

“भले ही ये ख़ून ख़राबा करें?” अशोक चिल्लाया।

“अरे, बारात में तो इनलोगों ने गोलियां चलाई थीं।भभुआ से सबसे महंगी नाच पार्टी का इंतज़ाम किया गया था। बाई जी नाचते नाचते थक गई थी। क़रार का समय भी समाप्त हो गया था पर बरातियों में किसी की ज़िद थी कि ‘दिल में तुझे बिठाकर’ गाने पर नाच हो जाए।

बाईजी इसी गाने पर तीन बार नाच पेश कर चुकी थी।चौथी बार के लिए तैयार नहीं हुई तो जनाब हवाई फ़ायर कर दिए। बेचारी डरते डरते चौथी बार भी नाची थी।

यहाँ तो सिर्फ लेजर फेंका गया।जाने दो अशोक, मुझे शिकायत नहीं करनी।”

“यह मत भूलिए इन्होंने कार्यस्थल पर मारपीट की है।अनुशासनिक कार्रवाई तो होनी ही चाहिए” अशोक फिर चिल्लाया।

दवा आ जाने के बाद डॉक्टर ने आवश्यक निर्देश दिए और कहा, “जो भी करना हो, बैंक जाकर कीजिएगा।अब यहाँ से भीड़ हटाइए। दूसरे मरीज़ भी देखने हैं..और हाँ… कपिलदेव जी, पैन सही जगह बेड के नीचे रख दीजिए।”

 सभी वहां से रुख़सत हुए। शाखा पहुँचने पर एक मीटिंग बुलाई गई, जॉइंट मीटिंग। जो अस्पताल नहीं जा सके थे, उन्हें उत्सुकता थी कि उनके पीठ पीछे क्या हुआ। शाखा प्रबंधक की इजाज़त से अशोक ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा,

” कार्यस्थल पर मारपीट सर्वथा अनुचित है।बाबू कपिलदेव सिंह जी को वाउचर पोस्ट करने के बाद अपने पीछे बैठे लेखापाल की टेबल पर लेजर फेंक कर नहीं रखना चाहिए था जिसकी वजह से बिजेंद्र सिंह अपमानित महसूस किए। पर उन्होंने उसके बाद जो किया वह निंदनीय ही नहीं, अपराध है।हम इसकी घोर भर्त्सना करते हैं।”

सभी कर्मचारियों ने समवेत स्वर में ‘शेम शेम’ कहा। अधिकारीगण चुप रहे। 

“चूंकि मामला जख़्मी और चोट देने वाले के बीच का है और बाबू कपिलदेव जी ने उदारता का परिचय देते हुए मुजरिम को माफ कर दिया, हम ऐसे उदारमना कपिलदेव बाबू की भूरि भूरि प्रशंसा करते हैं।”

सभी ने करतल ध्वनि से कॉमरेड कपिलदेव बाबू के लिए ज़िंदाबाद के नारे लगाए और यह भी कहा, 

“लॉन्ग लिव यूनियन”।

 अधिकारियों ने भी ताली बजाई।

“बिजेंद्र सिंह को माफ करने के बावजूद उनका गुनाह कम नहीं होता अतः हम शाखा प्रबंधक से अपेक्षा करते हैं कि वे उनपर कोई उचित परन्तु कठोर सज़ा मुक़र्रर करें जिससे भविष्य में ऐसा करने के पहले वे दस बार सोचें।”

शाखा प्रबंधक, जो पूरी मीटिंग के दौरान अपनी टेबुल के नीचे दोनों हाथ किए खैनी मसल रहे थे, ने अविलम्ब खैनी अपने निचले होंठ में दबाया और लदफद आवाज़ में बोलने लगे,

“जो हुआ सो हुआ, नहीं होना चाहिए था। शाखा का माहौल खराब करना उचित नहीं। ग्राहकों के बीच छवि खराब होती है।”   फिर पीछे लगे गांधी जी का बोर्ड दिखाते हुए बोले, “हम ग्राहक से ही हैं और हम ग्राहक के लिए ही हैं …इसलिए सबसे पहले हम निर्देश देते हैं कि काम शुरू कर शाखा में आए सभी ग्राहकों का कार्य अवश्य पूरा करें।

उसके बाद लेखापाल महोदय बाबू श्री बिजेंद्र सिंह को निर्देश देते हैं कि कपिलदेव सिंह का टांका कटने तक उनके दवा दारू का …हाँ दारू का भी…यदि कपिलदेव जी मांग करते हैं तो..और नहीं तो कोई बात नहीं.. ख़र्चा का वहन करेंगे जिसके लिए अस्पताल जाने के पहले वे रज़ामंद भी थे।

इसके अतिरिक्त कपिलदेव सिंह का टांका कटने तक पूरे स्टाफ के लिए लंच में एक केला, एक सेब, एक समोसा, एक रसगुल्ला, थोड़ा सा नमकीन और चाय भी उनकी तरफ से होगा। शाखा का कार्य बाधित करने के लिए उनपर लगाया यह ज़ुर्माना जरूरी है और पर्याप्त भी । और यह नियम आज से ही लागू होगा। किसी को कुछ कहना है।”

सभी ने सहमति में सर हिलाया तभी बाबू राजेन्द्र सिंह खड़े हुए और बोले, “सिर्फ़ आज के लिए एक दर्जन उबले अंडे का ज़ुर्माना भी लगा दीजिए हुजूर ।”

बिजेंद्र सिंह ना-नुकर करते रहे पर   किसी ने ध्यान नहीं दिया। लछुमन कहाँ देर करने वाला था । दौड़ पड़ा चाय नाश्ता और अंडे लाने।

सभा समाप्त हो गई और बिजेंद्र सिंह बुदबुदाते हुए खड़े हो गए,

‘हरामखोर कहीं का’

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सुधांशु शेखर पाठक

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