
जब मेरी तनहाई बोलती है तो मेरे कहने को कुछ भी नहीं रह जाता… अगर हम ईमानदारी से सुनें तो तनहाई हमारी आत्मा की आवाज बन कर दिल की गहराइयों में उतर जाती है | मैं बस इसे सुनता हूँ और कलम की मदद से कागजों पर महसूस करता हूँ |
..अगर इसे सही तरह से सुन कर समझ लिया जाए तो मैं समझता हूँ कि फिर और किसी गुरु की ज़रुरत नहीं रह जाती है ..और हमारा हृदय ही हमारा प्रेरणा स्त्रोत बन जाता है। इसलिये मैं मानता हूं कि मेरा कोई और गुरू नहीं है …मेरी तनहाई के सिवा।
अगर सही मायने में अपने हृदय के द्वार खुल जाएं तो फिर हमें आत्मा की यात्रा में गतिशील होने से कोई नहीं रोक सकता, यह बात बिलकुल सत्य है | शायद मेरी अंतर्यात्रा शुरू हो चुकी है। मेरी यह प्रेरणा आपकी भी अंतर्यात्रा की प्रेरणा बन जाए यही मेरी कोशिश है ..मेरी कविता लिखने का उद्देश्य है।

खामोश ज़िंदगी
सुनो ,यूँ खामोश ना रहा करो
कुछ कुछ बात भी किया करो …
तुम्हारी बक-बक करने से
तुम्हारे जिंदा होने का एहसास होता है |
सुनो, कभी कभी लड़ाई भी किया करो..
तुम्हारी “नोकझोक” में अपनापन का आभास होता है
सुनो ना , कभी – कभी प्यार भी किया करो..
तुम्हारे प्यार में..तुम्हारे “वो” होने का एहसास होता है
सुनो ना … यूँ खामोश ना रहा करो…
अच्छा चलो..प्यार ना सही ..शिकायत ही कर दिया करो
मन का भड़ास निकलने से, दिल तो हल्का होता है ..
तुम्हारी हँसी और मुस्कुराता चेहरा हमें अच्छा लगता है
रूठी हुई “खामोशियाँ” से बोलती हुई “शिकायते” अच्छी होती है
मैं पहले भी कितनी बार टूट कर बिखर चूका हूँ
अगर फिर से बिखर गया तो अब समेटेगा कौन ?
और अगर समेट भी लिया तो.. जोड़ेगा कौन ?
अब तो कुछ दिनों का सफ़र ही शेष है..
आओ एक वादा करे..
अब दिल भी संभालेगे..
आँसूं भी संभालेगे..
और खुद को भी ….
ये ज़िन्दगी बड़ी ख़ास है ..इसे आम नहीं बनाएंगे..
ज़िन्दगी के अंतिम सफ़र को .. ख़ुशी से बिताएंगे..
सुनो ना , तुम खामोश ना रहा करो …
कुछ कुछ बात भी किया करो ||
(विजय वर्मा ) .

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Categories: kavita
Bahut khoob
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Nice
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thanks
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मंज़िल यूं ही नहीं मिलती राही को, थोड़ा सा जुनून जगाना होता है,
पूछा चिड़ियाँ से कि घोंसला कैसे बनता है ? बोली तिनका तिनका उठाना पड़ता है |
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